विस्तार : सीक्रेट ऑफ डार्कनेस (भाग : 20)
ठंड के मौसम में सुहानी धूप फैली हुई थी। धीरे-धीरे सूरज पश्चिम की दिशा में बढ़ता गया और पश्चिम-दक्षिण के कोने में जाकर बादलों की ओट में छिप गया। थोड़ी ही देर में शाम होने वाली थी सभी गांव वासी खेतों से अपना-अपना काम-काज करके घर की ओर लौट रहे थे। सबको घर जाने की जल्दी थी क्योंकि जैसे ही सूर्य अस्त हो जाएगा वहां घना अंधकार और ठंडी पांव पसार लेगी। उजाले का कोई अन्य साधन केवल लकड़ियों को जलाना ही था। शीत ऋतु के समय शाम होते ही सभी आग जलाकर अपने अपने इष्ट से प्रार्थना करते और एक शुभ दिन देने के लिए उनका धन्यवाद अदा किया करते थे। गांव में उजाला करने एवं भीषण ठंड से स्वयं को करने के लिए सूखी लकड़ी का प्रयोग किया जाता था।
सूरज बादलों की ओट से निकलते हुए तेज गति से पश्चिम की ओर बढ़ा और थोड़ी ही दूर जाकर अपनी लाली चमकाते हुए, गांव की ऊंची पहाड़ी के पीछे छिप गया।
"भाई क्यों न आज हम सूरज के डूबने के नजारे को करीब से देखें।" आदित्य अपने मित्र वरुण का हाथ पकड़कर खिंचते हुए पहाड़ी की ओर बढ़ता हुआ बोला।
"पहाड़ी पर चढ़ जाने से सूरज तुम्हारे पास हो जाएगा?" वरुण फटकारते हुए अपना हाथ छुड़ाता है। "लगता है बौरा गए हो! अरे पढ़े नही हो क्या गुरुजी कहते हैं सूर्य आसमान में हमसे बहुत ऊपर है। वहां बस हनुमान जी गए थे धरती से, वो भी उड़कर!" वरुण घर की ओर बढ़ने लगा।
"अरे भाई! बहुत मन है, चलते है ना।" आदित्य उसकी ओर दौड़कर आते हुए बोली।
"तेरा मन है तो तू जा, देख मेरा भेजा मत खा।" वरुण गुस्से से बोला। हालाँकि अभी दोनों गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने जाते थे परन्तु वहां से आने के पश्चात अपने माता-पिता के कार्यों में उनका हाथ भी बटाते थे। यहां की मान्यता थी कि 'मात-पिता, गुरु सब देव हैं' गुरुजी भी यही पाठ पठाते थे। इसलिए बालक-बालिकाएं गांव में स्थित गुरुकुल से आते ही माता-पिता के संग कृषि कार्यो में जुट जाते।
सूर्य पूरी तरह डूबने वाला था, गांव पश्चिम दिशा में स्थित यह पहाड़ी वरुण एवं आदित्य के खेतों से सटकर शुरू होती थी। दोनों बचपन से ही इस पहाड़ी पर चढ़ने जाते थे, दोनों में इसकी शर्त लगती की कौन पहले चढ़ जाएगा। हालांकि आदित्य हर बार अपनी शर्त हार जाता, फिर भी शर्त लगाने से कभी बाज नही आया।
"अरे आदित्य! वहीं क्या कर रहे हो? घर चलो।" आदित्य की मम्मी उन दोनों को वहां खड़ा देखकर जोर से आवाज देकर पूछी।
"आता हूँ माई!" आदित्य, वरुण को घूरते हुए मुँह टेढ़ा करके बोला। वरुण आदित्य की इस हरकत पर अपना मुँह पकड़कर हँसने लगा, इससे आदित्य को और गुस्सा आया उसकी भौंहे तन गयी। वरुण को तो जैसे बस यही चाहिए था वह घर की ओर भागा, आदित्य भी उसके पीछे पीछे दौड़ते हुए घर पहुंच गया। अब घर पहुंचने के लड़ने का कोई अवसर ही प्राप्त नही हुआ, इसलिए आदित्य हमेशा की तरह आज भी चुप रहा, वरुण का घर पड़ोस में ही था, वह अपने घर चला गया।
"आदित्य सुनो बेटा बाहर अलाव में आग जला देना।" आदित्य के पिताजी अंदर कमरे में से बोले। लाल मिट्टी के दीवार जो सफेद मिट्टी से पोती हुई थी, मिट्टी के खपरैल से ढका, तीन ओर से, तीन बड़े कमरों का कच्चा घर था, तीनो कमरें आपस में एक-दूसरे से इस प्रकार सटे थे कि सामने तीनो ओर से घिरा एक छोटा सा आंगन बना हुआ था, जो चौथी ओर से लकड़ी के बाड़े से घेरा हुआ था। आदित्य आंगन में अलाव जलाने की व्यवस्था करने लगा।
थोड़ी ही देर में अलाव जला, आदित्य के पिताजी संध्या पूजा के बाद आग तापने आंगन में आ गयी वहीं आदित्य की माँ रसोईघर में भोजन की व्यवस्था करने लगीं। थोड़ी देर आग तापने के बाद आदित्य लकड़ी के बाड़े के उपर आकर बैठ गया, अचानक उसकी आँखों में अजीब सा भय भरता गया वह दौड़ते हुए आकर अपने पिताजी से चिपक गया, पिताजी दिन भर काम करके थके हुए थे और उसकी यह हरकत अजीब थी इसलिए उसे झिड़ककर खुद से दूर कर दिया। आदित्य रुवांसा होकर अपने आँसू पोछते हुए रसोई में चला गया।
"क्या हुआ बेटा? रो क्यों रहा है?" आदित्य की माँ उसकी तरफ देखते हुए बोली। "क्या किया जी आपने इसको?" वह जोर की आवाज लगाती हुई आदित्य के पिता से पूछी। आदित्य की धड़कनें तेज होती जा रही थी, इतनी तेज की कमरे में धाड़-धाड़ बजता हुआ सुनाई दे रहा था।
"मैंने तो कुछ नही किया है।" उसके पिताजी ने कहा। "यह तो यहीं पर बैठा था अब पता नही क्या हुआ?"
"आप जाकर देखिए वहां कुछ है क्या?" आदित्य की माँ बोली। उसके पिता जी का मन तो नही था पर अपनी पत्नी के कहने पर अनमने ढंग से बाहर की ओर झांके, उनकी भी आँखे आश्चर्य से फैल गयी।
"चलती हुई आग!" उनकी आँखें अविश्वसनीय दृश्य को देख रही थीं। पहाड़ की ओर से उन्हें कई आग की लपटें इसी दिशा में बढ़ती हुई दिखाई दे रही थीं।
"क्या कहा? आग जलती है, चलती नही।" आदित्य को कमरे में बिठाकर उसकी माँ भी दौड़ती हुई तेजी से बाहर आई कि अब इनको क्या हो गया है।
"हे राम! ये क्या हो रहा है?" जलती हुई आग की लपटें गांव की ओर बढ़ती जा रही थीं। आदित्य की माँ जलती हुई आग को देखकर अपना सिर पकड़कर वहीं बैठ गयी। आदित्य की पिता हिम्मत दिखाते हुए गांव वालों को सूचित करने लगे।
अचानक अंधेरा वहां और गहरा होने लगा, आसमान में काले मेघ छाने लगे, बिजलियाँ कड़कने लगी। ये सब यहाँ के मौसम के अनुसार असामान्य घटित हो रहा था, उन सभी के मन में अनजाना सा डर अपना घर किये जा रहा था। "हे राम! रक्षा करो।" आदित्य की माँ दुहाई किये जा रही थी। अचानक तेज अंधड़ आने लगे, अलाव में जल रही आग छितरा कर उड़ते हुए बुझ गयी। इतनी भीषण हवा थी कि घरों से खपरैल उड़ने लगे, पानी की तेज बौछारें दीवारों को चीरने लगी। सभी अपने-अपने घरों में कोनो से सिमटकर रह गए थे।
वरुण अपने घर के छेद से बाहर देखा इस भीषण बारिश में भी वह चलती आग का समूह लगातार जल रहा था, जैसे ही बिजलियाँ कड़कती वे लपटे और दहकने लगती। यह देखते ही वरुण का दिमाग काम करना बंद कर दिया, भला बारिश में कोई आग कैसे जलती रह सकती है! छत से रिसते हुए पानी टपक रहा था, जब यही बूंदे गलती से किसी के तन से टकराती तो वह सिहर उठता। थोड़ी ही देर में यह प्रलय थमा, तब तक गांव आधा तबाह हो चुका था, गांव वाले अपने घरों से बेघर हो चुके थे, वे सभी अपने घरों के बाहर खड़े होने लगे।
अब तक वे बुरी तरह डरे हुए थे, उन्होंने आज से पहले कभी ऐसे आँधी-तूफान भरे बरसात का सामना नही किया था। अंधेरी रात में डर एक साथ होने पर भी भरा जा रहा था, कुछ वृद्धजन इसी के बारें में चर्चा कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि कुछ मशालें उनकी ही दिशा में बढ़ती जा रही हैं, उन्हें लगा कि शायद ये पड़ोस के गांव वाले होंगे जो इनकी खोज-खबर लेने हैं इसलिए वे सब उन जलती आग की मशालों की ओर बढ़े।
वरूण को लगा कि शायद उसने जो देखा वो कोई भरम होगा। आदित्य के पिताजी बार बार कह रहे थे कि बरसात से पहले उन्होंने चलती आग को देखा था, और पहाड़ी को चढ़कर कोई भी मशालों का समूह लेकर यहां क्यों आएगा? पर उनकी बात पर किसी ने कोई ध्यान नही दिया। गांव के वैद्य जी घायलों और चोटिलों का उपचार करने लगे।
कुछ लोग दौड़ते हुए उन आग वालों की तरफ बढ़े, परन्तु जैसे ही वे उनके पास पहुँचे उन्हें एहसास हो गया कि वे बहुत बड़ी गलतफहमी के शिकार बन गए। वहां मशाल नही जलती हुई खोपड़ियां थी, उसके भयानक स्वरूप को देखकर गांववालों की रूह सर्द हो गई, पहले ही भीषण ठंड में इस बारिश और तूफान ने उन्हें पंगु कर दिया था। ये सभी जलती खोपड़ी वाले ग्रेमन के अनुचर डार्क गार्ड्स थे।
"सब भागों! ये सब तो अग्नि दानव है।" एक व्यक्ति उल्टे पांव गांववालों की तरफ भागता हुआ बोला।
"आतंक मचा दो डार्क गार्ड्स..!" एक डार्क गार्ड ऊँचे स्वर में बोला। उसके स्वर की हैवानियत भांपकर वहां की हवाओ ने भी अपना रुख मोड़ लिया।
एक डार्क गार्ड ने एक व्यक्ति के गले को पकड़कर उठाते हुए उसकी पीठ को फाड़कर रीढ़ की हड्डी को बाहर निकाल दिया। उसकी चीखों से वह वातावरण दहल गया।
दूसरे डार्क गॉर्ड ने एक भागते हुए व्यक्ति को पकड़कर उसके सीने से उसकी पसलियों को बाहर खिंच लिया, असहनीय दर्द से वह व्यक्ति चीखता हुआ वहीं तड़पने लगा।
डार्क गार्ड्स की निर्दयता बढ़ती जा रही थी, जैसे-जैसे वे गांववालों को बड़ी निर्दयता से मारे जा रहे थे वैसे ही उनके सिर पर जल रही आग की लपटों में चमक बढ़ती जा रही थी। एक डार्क गॉर्ड ने एक महिला के बालों को पकड़कर उठाते हुए उसके पेट को अपने हाथ से चीरते हुए उसकी अंतड़ियों को बाहर निकाल देता है। सभी गाँव वाले इधर उधर भागते हुए छुपने का प्रयास करने लगे, डार्क गार्ड्स उन्हें ढूंढ-ढूंढकर बहुत बुरी एवं दर्दनाक मौत मार रहे थे। ऐसी मौत की जिसे देखकर मौत की भी रूह कांप उठे।
एक डार्क गॉर्ड गिरी हुई दीवार के पीछे छुपे वरुण को उठा लेता है, उसे अपने हाथों से मौत देने ही वाला था कि अचानक उसके सिर की जलती हुई आग बुझ गयी। हवा में एक ओमेगा चिन्ह चमक रहा था, यानी कि विस्तार यहां आ चुका था।
"तुम कौन हो? हट जाओ हमारे रास्ते से!" एक डार्क गॉर्ड क्रोधित स्वर में पूछा।
"तुम्हें रास्ते से हटाने के लिए ही यहां आया हूँ मैं!" विस्तार ने कहा। कहते हुए उसके अधरों पर शैतानी मुस्कान सजी हुई थी। "आज विस्तार एक एक डार्क गॉर्ड को मौत देगा हाहाहा…!"
"साथियों पहले इसे खत्म करो!" डार्क गॉर्ड उसकी ओर बढ़ता हुआ बोला। विस्तार अपनी मुट्ठियों को कसते हुए आगे बढ़ा, उसके एक ही घुसे से वह डार्क गॉर्ड अंधेरे में गायब हो गया, उसका बुझा हुआ सिर विस्तार के हाथों में था जिसे उसने तिस्कृत दृष्टि से घूरते हुए फेंक दिया।
"आज एक भी डार्क गॉर्ड जीवित नही बचेगा तुच्छ ग्रेमन के नुमाइंदों!" विस्तार शैतानी लहजे में बोला। उसके दूसरे हाथ की दिशा में हजारों बुझी हुई खोपड़ियां लटकी हुई थी जिन्हें उसने अपने स्याह ऊर्जा रस्सी से पकड़ा हुआ था।
डार्क गार्ड्स यह देखते ही भागने लगे, विस्तार अपनी मुट्ठियों को कसकर बांधा और फिर खोल दिया। जोरदार धमाके के साथ कई डार्क गार्ड्स के चिथड़े उड़ गए। मगर ये क्या? ये तो फिर से जुड़ने लगे।
विस्तार अपने हाथ में पकड़ी खोपड़ियों को उनके ऊपर घुमाकर फेंका, उसकी चपेट में आये दो-तीन डार्क गॉर्ड चकनाचूर होकर धूल में मिल गए। अब भी यहां काफी डार्क गार्ड्स थे, विस्तार अपने दोनों हाथों को आपस में एक दूसरे के त्रिकोणीय स्थिति में लाते हुए मोड़कर हवा में उर उठता चला गया और फिर दोनों हाथों को तेजी से फैला दिया। उसके चारों ओर तेज हवा चली जमीन कांपने लगी और जमीन के अंदर से हड्डियों के ढाँचे निकलकर आपस में जुड़ने लगे, वे जुड़कर एक विचित्र जीव का निर्माण कर रहे थे। हड्डियों के ढांचे और जलती खोपड़ी के इस लड़ाई में कुछ ही समय बाद खोपड़ियां जलनी बन्द हो गयी। लोगो को लगा जैसे कोई मसीहा आया है, परन्तु चलती-फिरती हड्डियों के ढांचे को देखकर उनकी रूह कांप रही थी। उन्होंने मृत्यु का ऐसा भयानक नृत्य देखा था कि उनके लिए जिंदा रहना भारी पड़ रहा था।
शायद विस्तार को यह समझ आ गया था, हड्डियों के ढाँचे गांव वालों की दिशा में बढ़े। विस्तार हवा में ऊपर उठते हुए उन ढांचों को नियंत्रित कर रहा था।
गांव में फिर शोर गूँजने लगा। चीख-पुकार से यहां का वातावरण दहल गया। यहां स्वयं मृत्यु ने अपना नँगा नृत्य दिखाया था, जब सुबह हुई तो कटी-फ़टी विक्षिप्त लाशों के अतिरिक्त वहां कुछ भी शेष न था। पानी के धार के साथ बहा हुआ लहू जम गया था, गांव के ऊपर चील-कौव्वों के झुंड मंडरा रहे थे।
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"यह कैसे हो सकता है? हमारे सारे गार्ड्स मारे गए! किसने किया ऐसा दुस्साहस..?" ग्रेमन बड़े क्रोध में भड़क रहा था, उसे यह समझ नही आ रहा था कि एक दिन पहले सुपीरियर आर्मी को मात देने वाली डार्क गार्ड्स की सेना आज अचानक पूरी तरह से समाप्त कैसे हो गयी।
"अवश्य नराक्ष के पास कोई शक्तिशाली मोहरा है स्वामी। आप हमें आज्ञा दें।" डार्क फेयरीज़ ने अपने हाथों को जोड़ते हुए कहा।
"नही फेयरीज़! अब कोई छोटा-मोटा युद्ध नही होगा, अब सीधे अंधेरे का स्वामी बनने की चुनौती पेश की जाएगी। डार्क लीडर, नराक्ष से आमने सामने युद्ध की तैयारी करो।" आज ग्रेमन अत्यधिक क्रोध में था, इसलिए नही कि उसकी पूरी की पूरी सेना तबाह हो गयी, बल्कि इसलिए क्योंकि आज उसने फिर नराक्ष से मात खाया, अब वह उससे प्रतिशोध लेकर ही रहेगा।
"जो आज्ञा स्वामी!" ग्रेमन को इतने अधिक क्रोध में देखकर डार्क लीडर को कुछ कहने की हिम्मत न हुई।
क्रमशः….
Kaushalya Rani
25-Nov-2021 10:15 PM
Nice written
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Barsha🖤👑
25-Nov-2021 06:20 PM
बहुत खूबसूरत भाग👌👌👌👌
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